डॉलर को पूरी दुनिया में इंटरनेशनल करेंसी कहा जाता है. कोई भी देश डॉलर में भुगतान लेने को तैयार हो जाता है. लेकिन क्या इस तरह का सम्मान भारत की मुद्रा रुपया को मिलता है. जी हाँ, भले ही ‘रुपये’ को डॉलर जितनी आसानी से इंटरनेशनल ट्रेड में स्वीकार ना किया जाता हो लेकिन फिर भी कुछ ऐसे देश हैं जो कि भारत की करेंसी में आसानी से पेमेंट स्वीकार करते हैं. आइये इस लेख में इन सभी देशों के नाम जानते हैं.
भारतीय रुपया नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मालदीव के कुछ हिस्सों में अनौपचारिक रूप से स्वीकार किया जाता है. हालाँकि भारतीय रुपये को लीगल करेंसी के रूप में जिम्बाब्वे में स्वीकार किया जाता है.
भारत की करेंसी को इन देशों में करेंसी के रूप में इसलिए स्वीकार किया जाता है, क्योंकि भारत इन देशों को बड़ी मात्रा में वस्तुएं निर्यात करता है. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि जब कोई करेंसी "अंतरराष्ट्रीय व्यापार करेंसी" बनती है तो उसके पीछे सबसे बड़ा मूल कारण उस देश का 'निर्यात' होता है 'आयात' नहीं.
इस लेख में यह बताना जरूरी है कि नीचे दिए गए देशों में जिम्बाब्वे को छोड़कर किसी अन्य देश ने भारत की मुद्रा को ‘लीगल टेंडर’ अर्थात वैधानिक मुद्रा का दर्जा नहीं दिया है लेकिन भारत के पड़ोसी देश केवल आपसी समझ (mutual understanding) के कारण एक दूसरे की मुद्रा को स्वीकार करते हैं. इन देशों में मुद्रा का लेन देन मुख्यतः इन देशों की सीमाओं से लगने वाले प्रदेशों और उनके जिलों में ही होता है.
आइये अब विस्तार से जानते हैं कि किन-किन देशों में भारतीय रुपया मान्य/स्वीकार किया जाता है और क्यों?
1. जिम्बाब्वे: वर्तमान में जिम्बाब्वे की अब अपनी मुद्रा नहीं है. वर्ष 2009 में दक्षिणी अफ्रीकी देश ने अपनी स्थानीय मुद्रा, जिम्बाब्वे डॉलर को त्याग दिया था क्योंकि इस देश में हाइपर-इन्फ्लेशन के कारण देश की मुद्रा के मूल्य में बहुत कमी आ गयी थी. इसके बाद इसने अन्य देशों की मुद्राओं को अपने देश की करेंसी के रूप में स्वीकार किया है. वर्तमान में इस देश में अमेरिकी डॉलर, ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, चीनी युआन, भारतीय रुपया, जापानी येन, दक्षिण अफ़्रीकी रैंड और ब्रिटिश पाउंड का इस्तेमाल किया जाता है. इस देश में भारत की मुद्रा रुपया को लीगल करेंसी के रूप में वर्ष 2014 से इस्तेमाल किया जा रहा है.
2. नेपाल: भारत के एक रुपये की मदद से नेपाल के 1.60 रुपये खरीदे जा सकते है. भारत के नोट नेपाल में कितनी बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किये जाते हैं इसका अंदाजा सिर्फ इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जब 2016 में भारत ने नोट्बंदी की थी तब वहां पर लगभग 9.48 अरब रुपये मूल्य के भारतीय नोट चलन में थे. भारत के व्यापारी को एक भारतीय रुपये के बदले ज्यादा नेपाली मुद्रा मिलती है इसलिए भारत के व्यापारी नेपाल से व्यापार करने को उत्सुक रहते हैं.
यदि दोनों देशों के बीच व्यापार की बात करें तो वित्त वर्ष 2019-20 में भारत ने नेपाल से 57 करोड़ डॉलर की खरीदारी की। नेपाल 70 फीसदी आयात भारत से करता है। यह 2019-20 में 620 करोड़ डॉलर था।
नेपाल ने दिसम्बर 2018 से 100 रुपये से बड़े मूल्य के भारतीय नोटों को बंद कर दिया है लेकिन 200 रुपये से कम के नोट बेधड़क स्वीकार किये जा रहे हैं.
3. भूटान: इस देश की मुद्रा का नाम ‘नोंग्त्रुम’ (Ngultrum ) है. यहाँ पर भारत की मुद्रा को भी लेन-देन के लिए स्वीकार किया जाता है. भूटान और भारत के बीच कुल 9000 करोड़ रुपये का द्वीपक्षीय व्यापार है। सितम्बर 2018 तक भूटान की ओर से भारत को तकरीबन 14,917 मिलियन नोंग्त्रुम का आयात भेजा गया था जबकि इस देश द्वारा भारत से लिया गया निर्यात लगभग 12,489 मिलियन नोंग्त्रुम था. भारत का पड़ोसी देश होने के कारण इस देश के निवासी भारत की मुद्रा में जमकर खरीदारी करते हैं क्योंकि इन दोनों देशों की मुद्राओं की वैल्यू लगभग बराबर है और इसी कारण दोनों मुद्राओं के बीच विनिमय दर में उतार चढ़ाव से होने वाली हानि का कोई डर नहीं होता है.
4. बांग्लादेश: इस देश की मुद्रा का नाम टका है. वर्तमान में भारत के एक रुपये के बदले बांग्लादेश के 1.28 टका खरीदे जा सकते हैं. वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापार तकरीबन 18.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर चला गया था. इस प्रकार स्पष्ट है कि बांग्लादेश में भारत का रुपया बहुत बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है.
5. मालदीव: ज्ञातव्य है कि 1 भारतीय रुपया 0.19 मालदीवियन रूफिया के बराबर है. मालदीव के कुछ हिस्सों में भारत की करेंसी रुपया को आसानी स्वीकार किया जाता है. भारत ने 1981 में मालदीव के साथ सबसे पहली व्यापार संधि पर हस्ताक्षर किए थे. भारत से मालदीव को निर्यात का कुल मूल्य 117.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
इस प्रकार ऊपर लिखे गए लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत की मुद्रा को उसके पडोसी देशों में आसानी से स्वीकार किया जाता है. इसके पीछे मुख्य कारण इन देशों की एक दूसरे पर व्यापार निर्भरता है. हालाँकि रुपये को लीगल टेंडर का दर्जा सिर्फ जिम्बाब्वे ने दिया है.