कांग्रेस ने रविवार को सुखविंदर सिंह सुक्खू को हिमाचल प्रदेश का 15वां मुख्यमंत्री चुनकर नया पत्ता फेंका है। कांग्रेस पर छाए काले बादलों के बीच हिमाचल प्रदेश में मिली जीत, पार्टी के लिए उम्मीद की किरण बनकर आई है। मत प्रतिशत के लिहाज से देखें तो यह जीत मामूली है। कांग्रेस को विरोधी पार्टी भाजपा की तुलना में मात्र एक प्रतिशत वोट ज्यादा मिला है। साथ ही, चार लोकसभा सीटों वाला यह राज्य चुनावी लिहाज से भी छोटा है। फिर भी, पांच साल के अंतराल के बाद सत्ता में पार्टी की वापसी से यह उम्मीद जगी है कि भाजपा का विकल्प तलाशने वाले लोगों का वह एक ठिकाना हो सकती है। शीर्ष पद के लिए चल रही होड़ को भी पार्टी ने जल्द ही सुलझा लिया। श्री सुक्खू को चुनकर पार्टी ने कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने और अपने ऊपर चस्पा वंशवाद की राजनीति की छाप को दूर करने की कोशिश की है। एक बस ड्राइवर के बेटे और चार बार के विधायक श्री सुक्खू अपने शुरुआती दिनों में रोजी-रोटी के लिए दूध बेचा करते थे। वे विनम्र और जमीन से जुड़े राजनेता हैं। मृदुभाषी श्री सुक्खू, जिम्मेदारी उठाने से कभी पीछे नहीं हटे और दशकों तक कांग्रेस पर दबदबा रखने वाले दिवंगत वीरभद्र सिंह के खिलाफ खड़े रहे। श्री सुक्खू इस पद के लिए उपयुक्त पसंद हैं और उनकी पदोन्नति कांग्रेस के लिए जरूरी गतिशीलता के हिसाब से भी अनुकुल है, जो अक्सर इस पार्टी में नहीं दिखती।
नए नेतृत्व के सामने पार्टी की गतिशीलता को बनाए रखने और प्रशासन को चुस्त रखने की एक मुश्किल चुनौती है। कांग्रेस ने कई वादे किए हैं, जो पूरी तरह सोच-विचारकर किए गए नहीं लगते। इस सूची में सबसे ऊपर बाजार आधारित नई पेंशन व्यवस्था/योजना (एनपीएस) की जगह पर पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली का वादा है। ओपीएस लागू करने का मतलब, एक नई कल्याणकारी योजना की शुरुआत करना है जिसका बोझ सरकारी खजाने पर पड़ेगा। राज्य के 1.5 लाख कर्मचारी एनपीएस के तहत काम कर रहे हैं और इसका विरोध करने वाले ज्यादातर लोगों ने इस चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया होगा। श्री सुक्खू के उत्थान ने कांग्रेस में स्थापित सत्ता संरचना को भी झकझोरा है और उन्हें वीरभद्र सिंह के परिवार और उनके वफादारों का समर्थन सुनिश्चित करना होगा। उन्हें कांग्रेस की राष्ट्रीय योजनाओं से पनप रही अपेक्षाओं का भार भी उठाना होगा। पार्टी, अपने शासन वाले तीन राज्यों में चुस्त प्रशासन चाहती है, ताकि इसकी मिसाल देकर दूसरी जगहों पर वोट मांग सके। हिमाचल प्रदेश भले ही एक छोटा राज्य है, लेकिन सरकार बदलकर इसने अपने आकार के अनुपात से कहीं बड़ा संकेत दिया है। श्री सुक्खू की सबसे अच्छी बात है उनका सद्भाव, जो 40 साल से ज्यादा की राजनीति में उन्होंने अर्जित की है।
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