जोखिम और पुरस्कारः जल्लीकट्टू से मौत

जल्लीकट्टू में जोखिम उठाने वाले प्रतिभागियों और दर्शकों को सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए

Published - January 19, 2023 12:06 pm IST

तमिलनाडु के मदुरै, तिरुचि, शिवगंगा, पुटुकोट्टई और करूर जिलों में जल्लीकट्टू और मंजुविरातु के दौरान, पांच लोगों की मौत और दर्जनों लोगों के घायल होने की घटना दुर्भाग्यपूर्ण तो है, लेकिन इसमें हैरत की कोई बात नहीं। तीन साल के प्रतिबंध और इसके पक्ष में हुए बड़े आंदोलन के बाद जनवरी 2017 में जबसे इस आयोजन की शुरुआत हुई है, तबसे प्रतिभागी और दर्शक समान रूप से इसके शिकार हुए हैं। भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के मुताबिक, 2008-14 के दौरान 43 लोगों की मौत हुई और हजारों घायल हुए। जानवर की दुर्दशा की बात तो दूर, अभी लोगों की मौत के आंकड़े को शून्य तक पहुंचाना ही दूर की कौड़ी बनी हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017 की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं के एक बैच पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। जल्लीकट्टू कार्यक्रमों के आयोजकों को संविधान पीठ द्वारा नवंबर के आखिर में की गई टिप्पणी पर ध्यान देना चाहिए। पीठ द्वारा इस संशोधन के ऊपर दलीलें सुनी गई थीं कि जल्लीकट्टू के खेल अपने-आप में भले ही क्रूर न हो, लेकिन जिस “रूप” में इसे राज्य भर में मनाया जाता है, वह जरूर क्रूर हो सकता है। जल्लीकट्टू के समर्थक इस आयोजन को एक खेल के रूप में देखते हैं और यह तर्क देते हैं कि जिस आधार पर फुटबॉल और मुक्केबाजी को खेलने की अनुमति दी जाती है, उसी आधार पर जल्लीकट्टू को भी देखा जाना चाहिए क्योंकि फुटबॉल और मुक्केबाजी में भी चोट लगने की आशंका बहुत ज्यादा होती है। साथ ही, जिस तरह हादसों की वजह से इन दो खेलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग नहीं की जाती, उसी मानदंड पर जल्लीकट्टू को भी देखा जाना चाहिए जो संस्कृति, परंपरा, वीरता का वाहक है। हालांकि जिस बात की अनदेखी की जाती है वह यह है कि जल्लीकट्टू के उलट, फुटबॉल या मुक्केबाजी, यहां तक कि कार रेसिंग में भी पूरा खेल सिर्फ मनुष्यों के इर्द-गिर्द केंद्रित होता है।

हालांकि, इस दौरान नियमन और सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। राहत की बात यह है कि अधिकारियों ने नियमों को सख्त कर दिया है। मदुरै जिला में, जहां 21 आयोजन स्थल है, ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली के तहत सांड मालिकों को तीन हाई-प्रोफाइल आयोजन स्थलों- अवनीपुरम, पालामेडु और अलंगनल्लूर- में से सिर्फ एक को चुनने की अनुमति है। तिरुचि में किसी भी आयोजन में 700 से ज्यादा सांड को एक साथ छोड़ने की अनुमति नहीं है। साथ ही, राज्य पशुपालन, डेयरी, मत्स्य पालन और मछुआरा कल्याण विभाग द्वारा दिसंबर के अंत में विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए गए थे, जिसमें प्रत्येक हितधारक की जिम्मेदारियों और कर्तव्य के बारे में बताया गया था। काफी विस्तृत होने के बावजूद, इन नियमों में दंडात्मक कार्रवाई के भी प्रावधान होने चाहिए। अधिकारियों को मौतों को रोकने पर ध्यान देना चाहिए। खासकर दर्शकों की मौतों को और उनके सामने मजबूत घेराबंदी करना चाहिए। साथ ही, सरकार को युवाओं को आकर्षित करने के लिए कारों और मोटरसाइकिलों जैसे आकर्षक पुरस्कारों की प्रथा को खत्म करना चाहिए। आखिरकार जल्लीकट्टू मूल रूप से ताकत और वीरता दिखाने के लिए था, जान की बाजी लगाकर इन पुरस्कारों को हासिल करने के लिए नहीं।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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