सरकार ने अप्रैल, 2020 से लेकर दिसंबर, 2022 (बीच की एक छोटी अवधि को छोड़कर) के दौरान चलने वाली ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ (पीएमजीकेवाई) का और आगे विस्तार नहीं करने का निर्णय लिया है और खाद्यान्नों का अतिरिक्त आवंटन यानी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत लाभार्थियों को केंद्रीय पूल से हर महीने पांच किलोग्राम मुफ्त चावल या गेहूं प्रदान किया है। पीएमजीकेवाई ने अत्यधिक गरीबों को महामारी से लगने वाले झटकों को सोख लिया और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए विशेष रूप से उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में, जहां इस साल चुनाव हुए, राजनीतिक फायदे का सबब भी बना। इस योजना को बंद करते हुए, सरकार ने कहा है कि वह 2023 के लिए एनएफएसए के तहत खाद्यान्न का खर्च वहन करेगी और उस वर्ष अनुमानित 81.35 करोड़ लाभार्थियों के लिए इस अधिनियम के तहत मुफ्त राशन सुनिश्चित करेगी। दूसरे शब्दों में, राशन कार्ड धारक अब रियायती दर के बजाय हर महीने पांच किलोग्राम गेहूं या चावल मुफ्त में हासिल कर सकते हैं, जबकि अंत्योदय अन्न योजना कार्डधारकों को 35 किलोग्राम मुफ्त खाद्यान्न मिलेगा। चूंकि 81.35 करोड़ लाभार्थियों की अनुमानित संख्या अभी भी 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की पात्रता राशन कार्ड धारकों तथा केंद्र सरकार द्वारा तय किए गए कोटे तक ही सीमित है, कुछ राज्यों ने आगे बढ़कर एनएफएसए एवं अन्य योजनाओं के माध्यम से दूसरे लोगों को भी यह लाभ मुहैया कराया है। इस वितरण के खर्च का बोझ उठाते हुए, केंद्र सरकार, जिसने इस योजना पर दो लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि खर्च होने का अनुमान लगाया है, ने राज्यों को मौद्रिक अर्थों में सीमित ही सही लेकिन एक काबिलेतारीफ राहत प्रदान की है।
भले ही खाद्य वितरण और सब्सिडी प्रावधानों पर होने वाला खर्च राजकोषीय अर्थों में महंगा जान पड़ता है, लेकिन इन योजनाओं ने बेहद जरूरतमंदों को संकट से राहत दिलाई है। इन योजनाओं ने सरकार को अपने खाद्य बफर स्टॉक को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने में मदद की है और खरीदे गए खाद्यान्न की बर्बादी को भी उस स्थिति में कम किया है जब भारतीय खाद्य निगम द्वारा चावल और गेहूं के खरीद के आंकड़े काफी ऊंचे होते हैं। पीडीएस और पीएमजीकेवाई ने न सिर्फ बुनियादी खाद्य सुरक्षा को संभव बनाया है, बल्कि गरीबों के लिए उन अन्य वस्तुओं, जिनका खर्च वे इस लाभ के नहीं मिलने की स्थिति में वहन नहीं कर सकते थे, को खरीदने का मौका देकर आय हस्तांतरण के रूप में भी काम किया है। बेशक, खाद्यान्नों के दूसरे लोगों के हाथों में पड़ जाने की चिंताओं के बीच यह सवाल है कि क्या प्राथमिकता वाले परिवारों और “गरीबों में सबसे गरीब” की पहचान समेत लक्षित वितरण ने वाकई पात्र लोगों तक लाभ पहुंचाने में मदद की है। लेकिन जैसाकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया है, इसका अपेक्षाकृत अधिक ठोस समाधान पीडीएस का सार्वभौमिकरण हो सकता है, जोकि पहले से ही तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में अच्छी तरह से काम कर रहा है क्योंकि त्रुटिपूर्ण लक्ष्यीकरण प्रणाली के बजाय इससे इस योजना का लाभ किसी को भी ज़रूरत पड़ने पर मिल सकता है।
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Published - December 26, 2022 11:57 am IST